कैसे होती है भाईदूज तैयारी मिथिला में इसकी लोक परम्परा में बहन सबसे पहले ‘बाट (रास्ता) लीपती’ है. आंगन आने का रास्ता गोबर से लीपकर भाई के आन...
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कैसे होती है भाईदूज तैयारी
मिथिला में इसकी लोक परम्परा में बहन सबसे पहले ‘बाट (रास्ता) लीपती’ है. आंगन आने का रास्ता गोबर से लीपकर भाई के आने का इंतजार करती है. साथ ही, आंगन में पूरब की ओर रुख कर दसपात पुरैनि का अरिपन देकर उसके पश्चिम में लकड़ी का एक पीढ़ा लगाती है. पीढा पर भी तानी-भरनी जैसा अरिपन दिया जाता है. इसके आगे दसपात पुरैनि के ऊपर पीतल या कांसा का एक अढिया (कठौता) रखती है. इस कठौते में सुपारी, लौंग, इलायची, कुम्हर (कूष्माण्ड- भतुआ) का फूल, चाँदी का सिक्का अथवा कोई भी सिक्का, बड़ा हर्रे, पान का पत्ता तथा जल रहता है. इसके साथ चावल का पिठार (पीठा) तथा सिन्दूर की व्यवस्था रहती है. भाई के आने पर उसे सीधे उसी पीढ़ा पर बैठाया जाता है.
नोत लेने की विधि
इसे ‘धुरिआएल पएरे नोंत लेना’ कहते हैं. भाई अपने सर को ढँककर अंजलि बाँधकर पीढा पर बैठता है और बहन पश्चिम मुंह होकर उसकी अंजलि और दोनों पैरों पर पिठार और सिन्दूर लगाती है. साथ ही कठौते में रखी सारी वस्तुएँ भाई की अंजुरी में भर देती है. लोटा से अंजुरी पर जल गिराती हुई मंत्र पढ़ती है-
“ जमुना न्योते यम के
हम न्यौतईं छी अपन(नाम) भाई के
ज्यों ज्यों जमुना के धार बहल जाए
त्यों त्यों हमर भाई के अरुदा बढ़ल जाए.”
संस्कृत में शिक्षित परिवार में पौराणिक मंत्र पढ़ती है, जिसका अर्थ होता है कि ‘हे भाई मैं तुम्हारी बड़ी (या छोटी) बहन हूं. यमराज और विशेष रूप से यमुना की प्रसन्नता के लिए मेरे घर भात का भोजन करें.’ यह प्रक्रिया तीन बार की जाती है. पैरों पर सिन्दूर-पिठार एक ही बार लगाया जाता है. अंत में भाई के पैरों पर सिन्दूर-पिठार बहन अपने हाथ से पोंछ देती हैं और भाई के माथे पर तिलक लगा देती है.
छोटा भाई भी बुजुर्ग बहन से लेता है नोत
एक साल की छोटी बच्ची भी अपने बुजुर्ग भाई से नोंत लेती है. छोटा भाई हो तो वह बहन को पैर छूकर प्रणाम करता है और यदि बहन छोटी हो तो वह भाई को प्रणाम करती है. इसके बाद भाई को ‘बिगजी’ (भेषजी- सूखा मेवा, फल आदि) खिलाया जाता है. इसी में पानी में भिंगोया गया केराव (मगध के 'बजरी' को मिथिला में 'किर्री' कहते हैं) भी रहता है, जिसमें से कुछ दाने जो भींगकर कोमल नहीं होते हैं, उसे चुनकर बहन अपने हाथ से भाई को देती है. इसे ‘अंकुरी खिलाना’ कहते हैं. इसके बाद भाई को आराम से चावल भोजन कराया जाता है.
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